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स्वीकार भाव फल के प्रति रहना और कर्म करते जाना यह निष्काम कर्मयोग है :समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

मुरथल: समर्थगुरु धाम मुरथल, हरियाणा के संस्थापक समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया की कृपा से ऑनलाइन जूम के माध्यम से अनुभवी आचार्य डा. सुरेश मिश्रा जी ने बहुत ही प्रभावशाली एवं मनमोहक ढंग से सभी साधकों को अध्यात्म के गहरे सूत्र बताएं कि आत्मा का विकास ही अध्यात्म है। सनातन धर्म में आध्यात्मिकता और संस्कृति का बहुत योगदान है। अध्यात्म आत्मा है और संस्कृति शरीर है। जीवित पूर्ण सदगुरु और शिष्य की परम्परा से आध्यात्मिक यात्रा होती है। तीर्थो , वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता,श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, जपजी साहेब कुरान, बाइबल, हदीस, जिनसूत्र,धम्मपद आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। अनुभव और विज्ञान पर आधारित है आध्यात्मिक यात्रा। सभी साधकों को कीर्तन ध्यान का प्रयोग और अनुभव करवाया।

हिमाचल एवं देश के सभी जगह से मित्रों ने ध्यान एवं सत्संग का आनंद लिया

ट्विटर के माध्यम से समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया ने बताया कि अपनी आत्मा को जानना है और आत्मस्मरण में जीना है, आत्मा से जुड़कर के जीना है और आत्मा की सतत याद में जीना है, सतत आत्मा के ख़याल में जीना ही राम रस पीना है, इस बात को ठीक से समझ लो। यह अवचेतन मन आत्मा की शक्ति है और आत्मा की शक्ति ही परमात्मा की शक्ति है।

एक स्वीकार भाव फल के प्रति रहना और कर्म करते जाना, यह निष्काम कर्मयोग है। समर्थगुरु संघ हिमाचल की ओर से हर सप्ताह बुधवार को निशुल्क ध्यान व सत्संग का आयोजन होता है।

समर्थगुरु संघ हिमाचल के कॉर्डिनेटर आचार्य कुंजबिहारी ने समर्थगुरु धाम के अगामी प्रोग्राम के लिए मित्रों को निमंत्रण दिया। सभी साधकों का, आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा, स्वामी केतन, स्वामी ऋषभ जी, मां प्रार्थना, मां डॉ. अनीता मिश्रा और टीम हिमाचल का बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद किया।

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