सेमीकंडक्टर वॉर: भारत बनाम चीन

Semiconductor representative image. Credit: Pexels
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  • SEMICONDUCTOR WAR: INDIA vs CHINA [7 नवंबर Article]

रूस-यूक्रेन युद्ध से आप सभी बखूबी वाकिफ होंगे, लेकिन आज दुनिया में एक और बहुत ही महत्वपूर्ण युद्ध चल रहा है। आज दुनिया की सबसे बुनियादी ज़रूरतों में से एक सेमीकंडक्टर या माइक्रो चिप (Semiconductor Micro Chips) है। जिसे लेकर आज भारत और चीन के बीच जंग छिड़ी हुई है। सेमीकंडक्टर या माइक्रो-चिप सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में दिमाग का काम करता है। जिसे बनाने की प्रक्रिया बेहद जटिल और खर्चीली है। सेमीकंडक्टर माइक्रो चिप की खपत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की सेमीकंडक्टर उद्योग संघ (एसआईए) के सितम्बर 2022 के आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2022 के महीने में वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग की बिक्री 49 बिलियन डॉलर (लगभग 4 लाख करोड़ रुपये ) रही। जो की जुलाई 2021 की तुलना में 7.3% की वृद्धि है।

हर साल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बढ़ती मांग के साथ ही सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में नवाचार की आवश्यकता और बढ़ रही है। सेमीकंडक्टर की मांग न केवल इलेक्ट्रॉनिक उपकरवों में बल्कि युद्ध में इस्तेमाल होने वाले उन्नत हथियारों में भी हैं। और कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई के लिए भी बेहद आवश्यक है।

सेमीकंडक्टर (Semiconductor) उत्पादन के वैश्विक लीडर की बात करें तो चीन और ताइवान इसमें सबसे आगे हैं। अमरीकी तकनीक के आधार पर अनुसन्धान कर सेमीकंडक्टर बनाने में ताइवान दुनिया के 63 प्रतिशत उत्पादन को संभाले हुए है। ताइवान के बाद साउथ कोरिया (17 प्रतिशत) (South Korea 17%), अमरीका (7 प्रतिशत) (America 7%), और चीन (7 प्रतिशत) (China 7%)।

अमरीका-चीन (व्यापार युद्ध) ट्रेड वॉर (USA China Trade War) के चलते अक्टूबर की शुरुआत में, अमेरिकी सरकार ने उन्नत अर्धचालकों (एडवांस सेमीकंडक्टर) और उन्हें बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों तक चीन की पहुंच पर व्यापक नए प्रतिबंध लगाए दिए। नियम उन उद्योगों के लिए भी चिपमेकिंग टूल्स पर प्रतिबंधों का विस्तार करते हैं जो सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला का समर्थन करते हैं, अमेरिकी प्रतिभा और माइक्रो चिप्स बनाने वाले उपकरणों को बनाने वाले घटकों दोनों को काटते हैं। साथ में, ये प्रतिबंध अमेरिकी सरकार द्वारा चीनी प्रौद्योगिकी क्षमताओं को कमजोर करने की अपनी कोशिश में अब तक का सबसे महत्वपूर्ण कदम है।

जिसके कारण वैश्विक बाजार में नए निर्माताओं की मांग भी बढ़ रही है। जिसका फायदा भारत उठा सकता है। यदि, भारत सेमीकंडक्टर बनाने के लिए खुद को तैयार कर ले तो वैश्विक बाजार की मांग को पूरा करने का प्रयास कर सकता है। किन्तु, यह जटिल और खर्चीली प्रक्रिया अमरीकी अनुसंधान के और तकनीक के बिना बहुत मुश्किल होगी। साथ ही भारत में इस तरह के विशाल पैमाने पर उत्पादन के लिए आधारभूत संरचना की भी कमी है। जिसका अर्थ है, भारत में वर्तमान में उन्नत अर्धचालक (Advanced Semiconductor) निर्माण के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र नहीं है। हालांकि, टाटा समूह और वेदांता जैसे समूह ने यहां चिप उत्पादन संरचना स्थापित करने में रुचि व्यक्त की है, साथ ही कुछ वैश्विक फर्मों ने भी भारत में उत्पादन में रुचि दिखाई हुई है। जून 2022 में फॉक्सकॉन (Tech Giant Foxconn) के चेयरमैन यंग लिउ ने प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत के दौरान भारत में उत्पादन पर उनके रुझान को साफ़ ज़ाहिर भी किया था। फॉक्सकॉन अपने हॉन हाई फैसिलिटी में ऐपल के लिए स्मार्टफोन बनाती है। यह अपडेट इस कारण अहम हो जाता है कि ऐपल के मेड-इन-इंडिया स्मार्टफोन (Made-in-India Smartphone Market) के कारोबार में भी तेज़ी आई है। यहाँ तक की भारतीय समूह वेदांता और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र की दिग्गज फॉक्सकॉन ने गुजरात में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले एफएबी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लगाने के लिए गुजरात सरकार के साथ सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए है। गुजरात सरकार और वेदांता, फॉक्सकोन के करार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जताई। जिससे साफ़ ज़ाहिर है की इस कदम से भारत में सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग (Semiconductor Manufacturing) को तेजी मिलेगी। इस करार से गुजरात में 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा।

उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सेमीकंडक्टर अंतर्राष्ट्रीय बाजार (International Semicoductor Market) में यह अवसर भारत के लिए मौका और चुनौती दोनों है।

अखिल नाथ