बंधवाड़ी लैंडफिल में कचरा प्रबंधन ठप होने के बाद गुरुग्राम नगर निगम ने बड़ा कदम उठाते हुए रोजाना करीब 600 मीट्रिक टन कचरा सोनीपत स्थित वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट भेजने का निर्णय लिया है। सात महीने की इस अस्थायी व्यवस्था पर सवाल भी उठ रहे हैं।
उन्नत केसरी
गुरुग्राम से निकलने वाले करीब 1,200 से 1,500 मीट्रिक टन प्रतिदिन ठोस कचरे का प्रबंधन फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर बायोरेमेडिएशन और अन्य प्रसंस्करण कार्य ठप पड़े हैं, जिसके चलते नगर निगम गुरुग्राम (MCG) ने अब लगभग 40 से 50 प्रतिशत ताजा कचरे को सोनीपत के वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट तक भेजने की योजना बनाई है। यह व्यवस्था अगले सात महीनों तक जारी रहेगी और इस अवधि में कुल 1.2 लाख मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण सोनीपत में किया जाएगा।
नगर निगम ने इस कार्य के लिए निजी एजेंसी को ठेका सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। करीब नौ करोड़ रुपये की लागत से होने वाली इस व्यवस्था में यह शर्त रखी गई है कि सभी वाहन जीपीएस सक्षम होंगे और स्थायी ढंग से ढके रहेंगे ताकि रास्ते में कचरा गिरने या अवैध डंपिंग की आशंका न रहे। यदि नियमों का उल्लंघन हुआ तो संबंधित एजेंसी पर जुर्माना लगाया जाएगा। बिना ढके वाहन से कचरा ले जाने पर प्रतिदिन ₹1,000 का जुर्माना, रास्ते में कचरा गिराने पर भी ₹1,000 प्रतिदिन और कचरे को जलाने पर ₹5,000 या उससे अधिक का दंड निर्धारित किया गया है।
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इस बीच, बंधवाड़ी में पड़े करीब 14 लाख मीट्रिक टन “लीगेसी वेस्ट” यानी पुराने कचरे को लेकर भी सरकार ने नई योजना बनाई है। लगभग 90 करोड़ रुपये की लागत से इस कचरे की बायोरेमेडिएशन प्रक्रिया जनवरी 2026 में शुरू होगी और फरवरी 2028 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि, पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तक ताजा कचरा बंधवाड़ी भेजना बंद नहीं होगा, तब तक पुराने कचरे के निस्तारण का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
विशेषज्ञों ने वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट की उपयोगिता पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि घरेलू ठोस कचरे में ऊर्जा उत्पादन की क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है, जिसके चलते या तो अतिरिक्त ईंधन की जरूरत पड़ती है या फिर प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पहले ही हरियाणा सरकार और नगर निगम गुरुग्राम को साफ-सफाई व कचरा प्रबंधन के लिए सख्त निर्देश दिए हैं। अब देखना यह होगा कि सोनीपत भेजा जाने वाला यह 600 मीट्रिक टन कचरा शहर की सफाई व्यवस्था को कितनी राहत देता है और क्या प्रशासन इस अस्थायी समाधान को दीर्घकालिक नीति में बदल पाता है या नहीं।