समस्त भारत में श्री गणेश चतुर्थी व्रत (Shree Ganesh Chaturthi Fast) जिसे संकट हरण चौथ भी कहा जाता है, पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 10 जनवरी मंगलवार को आने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। यह जानकारी देते हुए कुरुक्षेत्र यज्ञ मन्दिर ट्रस्ट कुरुक्षेत्र के सचिव वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने बताया की समस्त देवताओं की शक्ति से सम्पन्न मंगलमूर्ति गणपति का माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को प्रकट्य हुआ था।
इस दिन बनारस काशी में श्रद्धालु श्री गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना करते हैं। अन्य क्षेत्रों में भी श्री गणेश जी के भक्त इस तिथि को संकट हरण चतुर्थी मान कर बड़े श्रद्धा भाव से व्रत रखते हैं। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने बताया की इस दिन रात्रि में चंद्रमा के उदय होने के पश्चात् संकट नाशक गणेश स्त्रोत का पाठ या श्री गणेश जी के 12 नाम एकदंत, वक्रतुंड कपिल, विनायक, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्नविनाशक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र व गजानन नामों का उच्चारण करके गणेश जी का पूजन करना चाहिए तथा गणेश जी को हरी घास (दुर्वा) की माला बनाकर पहनाने का भी विशेष महत्व माना जाता है।
उन्हे तिल के लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। तत्पश्चात् चंद्रमा को अर्घ्य देकर प्रशाद ग्रहण कर भोजन करना चाहिए। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने बताया की संकट हरण श्री गणेश चतुर्थी के प्रभाव से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं। तथा सभी कार्य बिना विघ्न के सम्पन्न हो जाते हैं। पुराणों में इस बात का बड़ा महत्व बताया गया है। इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति, दीर्घायु, मानसिक तथा शारीरिक बल में वृद्धि होती है।
उन्होंने बताया की संकट हरण चौथ (Sankat Haran Ganesh Chaturthi) के दिन श्री गणेश जी के वाहन मूषक तथा गजराज को भी लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। इस दिन अपने कारोबार में बढ़ोतरी के लिए व क्रूर ग्रहों की शांति के लिए कम से कम अपने वजन के बराबर गऊशाला में हरी घास खिलाना व गऊ माता व बछड़े को स्पर्श करना व परिक्रमा करने से सभी संकटों एवं बाधाओं की समाप्ति हो जाती है।