आधुनिक जीवन में अष्टांग योग

Ashtanga Yoga in Modern Life – Swami Amit Dev Ji Maharaj

स्वामी अमित देव जी महाराज, प्रधान योगाचार्य देव, श्री योग अभ्यास आश्रम ट्रस्ट

आज के विज्ञान, गति और व्यस्तता भरे युग में मनुष्य ने भौतिक जगत में बहुत प्रगति की है, परंतु अपने भीतर के अस्तित्व से दूरी बना ली है। तनाव, चिंता और असंतोष आधुनिक जीवन के अनचाहे साथी बन गए हैं। ऐसे समय में योग योगेश्वर महाप्रभु रामलाल जी भगवान, परम पूज्य गुरुदेव मुलखराज जी महाराज, योगाचार्य देवीदयाल जी महाराज तथा सुरेंद्र देव जी महादेव की दिव्य परंपरा हमें वही प्राचीन प्रकाश देती है जो आज भी मार्गदर्शक है।

श्री योग अभ्यास आश्रम ट्रस्ट (SYAAT) का उद्देश्य इस दिव्य परंपरा को जीवंत बनाए रखना है और योग को केवल प्राचीन दर्शन न मानकर आधुनिक युग में भी आचरण योग्य साधना के रूप में प्रस्तुत करना है। योग का सार अष्टांग योग है, जिसे महर्षि पतंजलि ने दिया—एक ऐसी संपूर्ण साधना पद्धति, जो मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक स्तर पर विकसित करती है।

आधुनिक जीवन में अष्टांग योग के अंग

  1. यम – सामाजिक संतुलन
    अहिंसा, सत्य और संयम केवल आदर्श नहीं हैं, बल्कि आज के असंतुलित समाज की अनिवार्यता हैं। यम का पालन जीवन में ईमानदारी और संतुलन लाता है।
  2. नियम – व्यक्तिगत अनुशासन
    आधुनिक जीवन प्रलोभनों और भटकाव से भरा है। शौच, संतोष, स्वाध्याय, ईश्वर प्ररणिधान और तप—ये नियम हमें सादगी और संतुलन के साथ जीना सिखाते हैं।
  3. आसन – शरीर की स्थिरता
    बैठे-बैठे जीवनशैली ने शरीर को दुर्बल कर दिया है। आसन शरीर को शक्ति, संतुलन और स्थिरता देते हैं और इसे आत्मा का उपयुक्त मंदिर बनाते हैं।
  4. प्राणायाम – श्वास का नियंत्रण
    श्वास ही जीवन है। अनुलोम-विलोम, नाड़ी शोधन जैसे प्राणायाम मन को शांति, मस्तिष्क को एकाग्रता और शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  5. प्रत्याहार – इंद्रियों पर नियंत्रण
    आज की दुनिया शोर और आकर्षणों से भरी हुई है। प्रत्याहार हमें बाहरी व्याकुलता से हटाकर भीतर की शांति का अनुभव कराता है।
  6. धारणा – एकाग्रता की शक्ति
    विखंडित मन कमजोर होता है। धारणा गुरु के स्वरूप, मंत्र या किसी श्रेष्ठ विचार पर केंद्रित होकर मन को दृढ़ और स्पष्ट बनाती है।
  7. ध्यान – ईश्वर से संयोग
    ध्यान केवल विश्राम नहीं, बल्कि दिव्य से मिलन है। हमारी परंपरा में ध्यान गुरु की दिव्य उपस्थिति में आत्मसमर्पण है, जो शांति और आत्मजागरण देता है।
  8. समाधि – परम मिलन
    योग का अंतिम लक्ष्य समाधि है—वह अवस्था जहाँ आत्मा और परमात्मा का संयोग होता है। व्यवहारिक जीवन में इसका अर्थ है—आनंद, संतुलन और निःस्वार्थ सेवा के साथ जीवन जीना।

आधुनिक मनुष्य के लिए संदेश

श्री योग अभ्यास आश्रम ट्रस्ट का संदेश स्पष्ट है: योग जीवन का त्याग नहीं, बल्कि जीवन का दिव्यता से मेल है। आधुनिकता से भागना नहीं, बल्कि योगिक अनुशासन के साथ उसे संतुलित करना ही साधक का मार्ग है।

समापन संदेश

मैं साधकों से विनम्र आग्रह करता हूँ—योग को केवल पुस्तकों या शिविरों तक सीमित न रखें। इसे अपने दैनिक जीवन में उतारें। हर श्वास, हर विचार और हर कर्म योग की दिशा में एक कदम हो। यही मार्ग हमारे पूज्य गुरुओं ने दिखाया है और यही मार्ग आज की मानवता को शांति, शक्ति और ज्ञान की ओर ले जाएगा।

— स्वामी अमित देव जी महाराज
प्रधान योगाचार्य देव
श्री योग अभ्यास आश्रम ट्रस्ट