वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक
कुरुक्षेत्र 31 मार्च :- कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग के प्रांगण में तीन दिवसीय कला प्रदर्शनी का शुभारम्भ हुआ जिसमें छात्र कलाकार शुभमदीप कौर, अस्मिता कुमारी, अनुराधा एवं मंजीत कौर की सामूहिक कला प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर राजेंदर सिंह राणा, पूर्व संग्रहालय अध्यक्ष, श्री कृष्णा संग्रहालय कुरुक्षेत्र मुख्य अतिथि रहे। शुभमदीप कौर ने बताया कि प्रकृति में, कुछ भी संपूर्ण नहीं है और सब कुछ संपूर्ण है। प्रकृति हमसे प्रेम करती है जो हममें सबसे अच्छा है व प्रकृति हमेशा आत्मा के रंग पहनती है। अपने चित्रों में इस प्रकृति के प्यार और अध्ययन को दिखाने की कोशिश की हैं। अस्मिता कुमारी ने बताया कि वह प्रकृति के साथ काम करती हैं, वह विभिन्न तत्वों का उपयोग प्रकृति के रूपांतर के रूप में करती हैं, जैसे पक्षी, पशु, मानव शरीर आदि। उन्होंने अपनी कला में आकार को बदलने का प्रयोग किया है। जो उन्हें अपनी कला का प्रतीकात्मक रूप से प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देता है, उनका मानना है कि कला एक सबसे अच्छा माध्यम हैं मानवता के दिल, दिमाग और आत्मा को प्रकृति से दोबारा जोड़ने का है। उन्होंने बताया कला हमें अपनी व्यक्तिगत कहानियों को साझा करने के लिए है और जो हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि हम भी प्रकृति का एक हिस्सा हैं।
अनुराधा ने बताया कि उनका काम उस विशाल कल्पना को दर्शाता है जो जीवन में महिलाओं की भावनाओं और जीवन की अनिश्चित और अप्रिय यात्रा में अपने अंदर मौजूद सुंदरता के बारे में है। गेरू, भूरा, हरा जैसे पृथ्वी के रंगों के उपयोग से तत्व इसके बीच एक आपसी सम्बन्ध बनाते हैं जो एक महिला की प्रकृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंजीत कौर ने बताया कि वह काफी समय से फेमिनिन क्रिएटिव पर काम कर रही हैं। उन्होंने शादी के बाद अपनी शिक्षा जारी रखी और तब से उनका ध्यान पूरी तरह से इस बात पर रहा है कि जिम्मेदारियों के बोझ के साथ एक महिला का जीवन कैसे बदलता है, जिसमें घर का काम, पति या पत्नी/बच्चों की देखभाल, और वे कैसे हैं, तक सीमित नहीं है। त्रुटि की गुंजाइश के बिना चीजों को प्रबंधित करने की अपेक्षा की जाती है। समाज के निर्णयात्मक पक्ष ने उन्हें ब्रश चुनने और अपनी भावनाओं को कैनवास पर उतारने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया उनकी कलाकृतियां खुद के जीवन से काफी मिलती-जुलती हैं। मातृत्व ने उन्हें जीवन के दूसरे पक्ष को देखने का मौका दिया और यह उनकी कुछ पेंटिंग में दर्शाया गया है। माँ के गर्भ में जीवन की शुरुआत से लेकर गोद में रहने तक, जीवन के विभिन्न चरणों को उन्होंने जीते हुए या भविष्य में एक बच्चे के साथ जीवन की कल्पना करते हुए चित्रित किया है।
ललित कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पवन ने बताया कि कुवि का ललित कला विभाग वर्ष 1995 में स्थापना के साथ ही प्रदेश में कला के प्रति जन-जागृति पैदा कर रहा है। वर्तमान में ललित कला विभाग प्रदेश तथा भारत के सर्वोत्तम कला संस्थानों में से एक है।
ललित कला विभाग में विद्यार्थियों द्वारा समय-समय पर ऐसे प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है जिससे विद्यार्थियों में कला के प्रति जागृति पैदा होती है। उन्होंने बताया कि यह प्रदर्शनी 31 मार्च से 2 अप्रैल के बीच प्रातः 10 बजे से सायं 4 बजकर 30 मिनट तक दर्शकों के लिए खुली रहेगी। उन्होंने बताया कि प्रदर्शनी के माध्यम से विद्यार्थियों को कला को प्रदर्शित करने का अवसर दिया जाता है। ललित कला में विद्यार्थियों के लिए व्यवसाय की अनगिनत संभावनाएं हैं। इस प्रदर्शनी में वरिष्ठ कलाकार प्रोफेसर राम विरंजन, डॉ. गुरचरण सिंह, डॉ. मोनिका गुप्ता, डॉ. राकेश बानी, डॉ. जया दरोंदे, डॉ. आरके सिंह, डॉ. आनंद जायसवाल, सुशील कुमार, आरएस पठानिया व अन्य अध्यापक गण के साथ-साथ शोधार्थी एवं विद्यार्थीगण मौजूद थे।