Article on Effects of Inflation in United States and Europe on Indian IT & BPM Industry
क्या अमरीका-यूरोप की बढ़ती महंगाई भारतीय आईटी उद्योग (Indian IT Industry) को ले डूबेगी?
भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8 प्रतिशत योगदान करने वाली इंडस्ट्री इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी यानी आईटी इंडस्ट्री (IT Industry) है। जहाँ टीसीएस (Tata Consultancy Services), इनफ़ोसिस (Infosys) जैसी कम्पनिया विश्वप्रसिद्ध सेवा प्रदान करती हैं वहीं यह इंडस्ट्री हमारे देश के 45 लाख से 48 लाख लोगों को रोज़गार प्रदान करती है। इस इंडस्टी की ग्रोथ का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं की आज भारत की आईटी-बीपीएम इंडस्ट्री (IT & BPM Industry) विश्व की 56 प्रतिशत निर्यात को थामे हुए है। यह न केवल एशिया, बल्कि यूरोप के बड़े देशों सहित अमरीका को भी सर्विस प्रदान करती है। भारत से आईटी निर्यात के लिए अमेरिका प्रमुख निर्यात गंतव्य है, इसके बाद यूके और इन दोनों देशों ने मिलकर 2018-19 में भारत के कुल आईटी निर्यात का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा रहा, जिसमें से अमेरिका ने 62 प्रतिशत से अधिक का योगदान रहा। भारत से कुल आईटी निर्यात। एपीएसी, लैटिन अमेरिकी और मध्य पूर्व देशों से आईटी निर्यात की मांग बढ़ रही है। हमने इंडिया की आईटी इंडस्ट्री को तो समझ लिया और इसके लिए अमरीका और यूरोप द्वारा किये जा रहे सेवा आयात का महत्त्व भी समझ लिया किन्तु अब प्रश्न यह है की अमरीका और यूरोप में बढ़ रही महंगाई से भारतीय आईटी-बीपीएम इंडस्ट्री का क्या नुक्सान है?
आज कोविड-19 से उभरते विश्व में बढ़ती महंगाई एक बड़ा संकट बन गयी है। अमरीका, यूरोप समेत विश्व भर की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं क़र्ज़ लेने की ब्याज दर में बढ़ोतरी करने में लगे हैं। जिससे बढ़ती महंगाई को किसी तरह थामा जा सके। इसका सीधा प्रभाव व्यापार पर पड़ रहा है। बाजार में नकदी की कमी होने का सीधा प्रभाव व्यापार और रोज़गार पर पड़ता है। यहाँ समझना ज़रूरी है की वैश्वीकरण के कारण आज कोई भी देश अकेला प्रभावित नहीं होता बल्कि उससे जुड़े सभी देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। जिससे हमारे देश की आईटी इंडस्ट्री (IT Industry) भी अछूती नहीं रहेगी। भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी विप्रो जिसके 52 प्रतिशत आय अमरीका से आते हैं, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी टीसीएस जिसकी आय का 52 प्रतिशत केवल उत्तर अमरीका से आता है, और इनफ़ोसिस जिसका वित्तीय वर्ष 2022 में 61-4 प्रतिशत अमरीका से तथा 25-2 प्रतिशत यूरोप से आता है, इसके कुछ बड़े उदहारण है। बढ़ती महंगाई को काबू करने के प्रयासों के कारण आज इन सभी राष्ट्रों में मंदी के आसार देखे जा रहे है। जिससे भारतीय निर्यात पर असर पड़ना भी तय होगा।
आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक के अनुसार अगले दो साल तक दुनिया भर में अर्थव्यवस्था में कठिनाइयां बनी रहेंगी। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका की अर्थव्यवस्था 38 प्रतिशत मंदी की ओर फिसलती जा रही है। वहीँ चीन का मंदी में जाना 20 प्रतिशत मालुम हो रहा है।
क्या है भारत का जवाब
अगर ब्याज दर बढ़ती रही तो निवेशक अमरीका जैसी स्थिर अर्थव्यवस्था में निवेश करना पसंद करेंगे न की भारत में। जिसके कारण भारत से निवेश बहिर्वाह देखने को मिल सकता है। जिसके कारण भारतीय कंपनियों के शेयर मूल्यों में गिरावट भी आ सकती है। जिसमे भारतीय आईटी कम्पनिया भी शामिल हैं जिनमे बाहरी निवेश बहुत ही अधिक मात्रा में होता है। जिसे रोकने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ब्याज दर को और बढ़ा सकता है, जिससे भारत में भी महंगाई तेज़ी से बढ़ेगी और व्यापारों के लिए फंड जुटाना महंगा होता चला जाएगा। जिसके उलट अगर ब्याज दर कम की गयी तो मौद्रिक सख्ती के अभाव में भारत के बाज़ारों में आयातित सामान के कारण महंगाई में भारी उछाल भी देखा जा सकता है जिससे परिणामस्वरूप भारतीय बाजार से विदेशी निवेश को खींचा जाना तय हो जाएगा। जिससे भारत में व्यापारिक अवसरों और आर्थिक विकास पर भी प्रभाव पड़ेगा।