जहां चिंता है वहां कैसी प्रसन्नता : विद्या गिरि

जहां चिंता है वहां कैसी प्रसन्नता : विद्या गिरि

उन्नत केसरी । वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

  • प्रभु की शरण में रहने वाला व्यक्ति चिंता मुक्त रहता है : विद्या गिरि

पंजाब (खन्ना): संत महामंडल की अध्यक्षा एवं श्री बाबा नंदगिरि डेरा समाधा नसुरी फतेहपुर खन्ना की महंत महामंडेलश्वर 1008 स्वामी विद्या गिरि जी महाराज ने आज सत्संग में बताया की जहां चिंता है वहां कैसी प्रसन्नता उन्होंने कहा कि चिंता अनेक रोगों की जननी है जो इंसान को डीमक की तरह खोखला कर देती है। महंत विद्या गिरि जी महाराज ने कहा कि मनुष्य कर्मों से अधिक अशांत नहीं है वह इच्छाओं से, वासनाओं से अधिक अशांत है। जितने भी द्वंद , उपद्रव, अशांति, और सबसे ज्यादा अराजकता कहीं है तो वह व्यक्ति के भीतर है।मनुष्य अपना संसार स्वयं बनाता है। पहले कुछ मिल जाये इसलिए कर्म करता है। फिर बहुत कुछ मिल जाये इसलिए कर्म करता है। इसके बाद सब कुछ मिल जाये इसलिए कर्म करता है। उसकी यह तृष्णा कभी ख़तम नहीं होती। जहाँ ज्यादा तृष्णा है वहाँ चिंता स्वभाविक है।

जहाँ चिंता है वहाँ कैसी प्रसन्नता ? कैसा उल्लास ? यदि मनुष्य की तृष्णा शांत हो जाये , उसे जितना प्राप्त है उसी में सन्तुष्ट रहना आ जाये तो वह कभी भी अशांत नहीं रहेगा। इंसान अपने विचार और सोचने का स्तर ठीक कर ले तो जीवन को मधुवन बनते देर ना लगेगी।

महंत विद्या गिरि जी महाराज ने कहा कि इंसान को जीवन की सभी चिंताओं को प्रभु के अर्पण कर तनावमुक्त जीवन जीना चाहिए। उन्होंने कहा प्रभु जो कुछ भी करते है हमारे अच्छे के लिए ही करते है इंसान को संतोषी होना चाहिए और जनकल्याण हित में कार्य करना चाहिए।