वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक
उन्नत केसरी
- भारत देश की मूल भाषा हिंदी, आमजन की भाषा में विधि कानून बनाने की जरूरत: प्रो. वीके अग्रवाल
- कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने किया विधि विभाग के नवनिर्मित संगोष्ठी कक्ष का लोकार्पण
- कुवि के विधि विभाग द्वारा ‘मानव एवं मौलिक अधिकारों के संरक्षण में हिन्दी का महत्व’ विषय पर कार्यशाला आयोजित
कुरुक्षेत्र, 21 नवम्बर: कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा (KUK Vice Chancellor Prof Som Nath Sachdeva) ने कहा कि हिन्दी भाषा देश की प्रथम भाषा है जो भाषा के तौर पर सबसे ज्यादा बोली जाती है। मानव एवं मौलिक अधिकारों के संरक्षण में हिन्दी भाषा का विशेष महत्व है जिसके विषय में सभी को सोचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जो जगह हृदय में हिन्दी के लिए है वह किसी और भाषा के लिए नहीं है। वे सोमवार को कुवि के विधि विभाग द्वारा आयोजित मानव एवं मौलिक अधिकारों के संरक्षण में हिन्दी का महत्व विषय पर आयोजित कार्यशाला में बतौर अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।
इससे पहले कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (Kurukshetra University, KUK) के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने विधि विभाग के नवनिर्मित संगोष्ठी कक्ष का लोकार्पण किया। उनके साथ इस मौके पर जगन्नाथ विश्वविद्यालय, जयपुर के प्रो. चांसलर प्रो. वीके अग्रवाल, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव मदन मोहन छाबड़ा, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. मंजूला चौधरी, कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, विधि विभाग के अधिष्ठाता प्रो. अमित लूदरी, कार्यशाला की संयोजक प्रो. सुशीला चौहान मौजूद रहे। कार्यशाला का शुभारम्भ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा (VC SN Sachdeva) ने कहा कि प्रथम भाषा के तौर पर 43 प्रतिशत लोग हिंदी भाषा का प्रयोग किसी न किसी रूप में करते हैं। उसी प्रकार बंगाली एवं मराठी को क्रमशः 8 प्रतिशत व 6.9 प्रतिशत लोग बोलते हैं वहीं अंग्रेजी को 1 प्रतिशत से भी कम लोग ही इस भाषा का प्रयोग करते हैं। यदि हिन्दी भाषा किसी व्यक्ति की प्रथम भाषा नही फिर भी 57 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में हिन्दी बोलते हैं। बंगाली एवं मराठी 9 और 8 प्रतिशत तथा अंग्रेजी को केवल लगभग 11 प्रतिशत ही लोग प्रयोग करते हैं। इन सभी के बावजूद अधिकतर कार्य अंग्रेजी में होता है। दलित, वंचित एवं शोषित वर्ग जो कि अंग्रेजी को नहीं समझते, ऐसे में सभी को हिन्दी भाषा के लिए संकल्पबद्ध होकर प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता है।
कुलपति प्रो. सोमनाथ ने संगोष्ठी में उपस्थित न्यायिक सेवा में नवचयनित विधि विभाग के छात्रों की प्रशंसा करते हुए कहा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की पहचान उसके विद्यार्थी है जिन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया है। उन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने इस दिशा में पहल करते हुए विधि कोर्सों सहित अन्य प्रोग्राम में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए विद्यार्थियों को परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में देने की सुविधा प्रदान की है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय ने विधि प्रोग्राम से संबंधित हिन्दी भाषा की पुस्तकें पुस्तकालय में शीघ्र उपलब्ध करवाने के लिए प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2022 को सही मायने में लागू करने वाला कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय देश का प्रथम विश्वविद्यालय है। हाल ही में दिल्ली में आयोजित ज्ञान उत्सव कांफ्रेंस में देशभर के 75 विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को छोड़कर किसी भी विश्वविद्यालय ने भी एनईपी 2022 को सही मायने में लागू करने का दावा नहीं किया। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय अगले वर्ष से लगभग 290 संबंधित कॉलेजों के सभी पीजी प्रोग्राम में एनईपी 2022 को लागू किया जाएगा। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हिन्दी भाषा को सबसे ज्यादा लोग समझते हैं। कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने इस कार्यशाला के सफल संचालन के लिए डीन लॉ एवं विधि विभाग के अध्यक्ष प्रो. अमित लूदरी एवं आयोजन टीम को बधाई दी।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जगन्नाथ विश्वविद्यालय, जयपुर के प्रो. चांसलर प्रो. वीके अग्रवाल ने कहा कि हिंदी मेरे दिल में बसती है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी मेरी प्रोफेशनल भाषा व हिंदी मातृभाषा है तथा हिन्दी भाषा मां के समान है और किसी के लिए मां से बड़ी कोई चीज नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि आजकल सरकारी कार्यालयों, कोर्ट सहित हर जगह अंग्रेजी भाषा का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। यह दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी ज्यादा कार्य अंग्रेजी में हो रहा है जबकि भारत देश की मूल भाषा हिंदी है। उन्होंने कहा कि आमजन की भाषा में विधि कानून बनाने की जरूरत है ताकि लोगों को अपने अधिकारों का ज्यादा से ज्यादा ज्ञान हो।
प्रो. वीके अग्रवाल ने कहा कि देश में 55 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। इसके अलावा तमिल व तेलगू भाषा बोली जाती है। जब देश में बहुसंख्यक लोग हिंदी बोलते या समझते हैं फिर भी हिंदी को हम राष्ट्रभाषा घोषित नहीं कर पाए लेकिन यह खुशी की बात है कि हिंदी भाषा बिना घोषित किए ही राष्ट्रभाषा बन गई है इसलिए हमें हिंदी का प्रचार व प्रसार करना चाहिए। विश्व स्तर पर भी करीब 75 करोड़ लोग हिंदी बोलते या समझते हैं। हिंदी विश्व के करीब 150 देशों में बोली जाती है। उन्होंने कहा कि कानून ऐसे बनाने चाहिए जो आम आदमी की समझ में आ सके। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर जगह हिंदी में बोलते हैं जिस कारण विदेशी भी हमारे साथ जुड़ रहे हैं। यह अच्छी शुरूआत हैं और आने वाले समय में हिंदी विश्व की महारानी होगी।
कुवि के विधि विभाग के पूर्व छात्र एवं कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड मानद सचिव मदन मोहन छाबड़ा ने कहा कि हिन्दी की खूबसूरती इसी में है कि जैसी वह लिखी जाती है वैसी ही पढ़ी जाती हैं। उन्होंने कहा कि देश के आजाद होने के उपरान्त हिन्दी के महत्व को देखते हुए इसकी लिपि देवनागरी की गई। किसी भी संस्कृति के मूल में भाषा निहित होती है व भाषा भूगोल को भी निर्धारित करती है। भाषा के आधार पर राज्यों का वर्गीकरण किया गया है। उन्होंने उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश में कानून की पढ़ाई हिन्दी माध्यम से होती है।
कार्यशाला में मुख्यातिथि सहित सभी का स्वागत करते हुए विधि संकाय के डीन व विभागाध्यक्ष प्रो. अमित लूदरी ने कहा कि भाषा नहीं है हिंदी भावना है, हिन्दुस्तान की आत्मा है हिंदी। उन्होंने कहा कि कुवि कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा के नेतृत्व एवं कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा (KUK Registrar Dr Sanjeev Sharma) के स्नेह द्वारा विधि विभाग निरंतर प्रगति के पथ अग्रसर है। कार्यशाला में मंच का संचालन डॉ. प्रियंका व डॉ. आरुषि मित्तल ने किया।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि कुवि कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. मंजूला चौधरी, प्रो. राजपाल शर्मा, प्रो. दलीप कुमार, प्रो. चांदराम जिलोवा, प्रो. भगवान सिंह चौधरी, प्रो. प्रीति जैन, प्रो. परमेश कुमार, प्रो. आरके गुप्ता, प्रो. एससी गुप्ता, प्रो. सुमन गुप्ता, प्रो. अनीता तनेजा, प्रो. बीआर सैनी, डॉ. दीप्ति चौधरी, डॉ. प्रोमिला, डॉ. आशीष अनेजा, डॉ. सुशीला चौहान, डॉ. सुनील ढुल, डॉ. विवेक चावला, डॉ. महाबीर रंगा, डॉ. शालू अग्रवाल, डॉ. सुधीर, डॉ. अंजू व पूजा, डॉ. सुरेन्द्र कल्याण, डॉ. सुनील भारती व डॉ. सुरेन्द्र सिहं सहित अन्य शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।