- गुरुकुल के फार्म के दौरे के बाद केन्द्रीय मंत्री ने कृषि मंत्रालय के अधिकारियों को प्राकृतिक खेती को जनांदोलन बनाने का आह्वान किया
- एनसीईआरटी प्राकृतिक कृषि पर तैयार करेगा पाठ्यक्रम
कुरुक्षेत्र, 15 सितम्बर 2022: गुजरात के महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने देशभर में प्राकृतिक कृषि का मिशन जारी रखा है, जिसका उद्देश्य देश के किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के साथ-साथ पर्यावरण को स्वच्छ बनाना है। आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र के प्राकृतिक कृषि फार्म का दौरा केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने किया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती को लेकर उनके मन में जो शंकाएं थीं वह गुरुकुल में आने के बाद दूर हो गई हैं और अब वे स्वयं भी राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी के इस मिशन से कंधे से कंधा मिलाकर देश के किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में अपना पूर्ण योगदान देंगे। उन्होंने कृषि मंत्रालय के अधिकारियों व उपस्थित कृषि वैज्ञानिकों से भी आह्वान किया कि आचार्यश्री के इस मिशन से दिल से जुड़े क्योंकि यह मानव कल्याण का कार्य है, हमारी जमीन को बचाने का प्रयास है, जीवों को बचाने का एकमात्र साधन है। उन्होंने कहा कि देशी गाय पर आधारित प्राकृतिक खेती से जल, जंगल, जमीन, जलवायु और जीवन, इन सभी का संरक्षण होगा और किसान के घर में खुशहाली आएगी। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का सपना है कि जब हम आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएं तो उस समय हमारा देश पूर्ण विकसित राष्ट्र हो, प्राकृतिक खेती इसमें अहम भूमिका अदा कर सकती है क्योंकि यह कृषि प्रधान देश है, जब किसान को कम खर्च में अधिक उत्पादन मिलेगा और वह भी जहरमुक्त, शुद्ध उत्पादन तो निश्चित तौर पर किसान की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और किसान खुशहाल होगा तो मेरा देश समृद्ध और शक्तिशाली बनेगा। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि यदि पूरी ट्रेनिंग लेकर सही तरीके से प्राकृतिक खेती की जाए तो यह नौकरी से बहुत अच्छा स्वरोजगार भी साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि आज देश के अस्पताल कीटनाशकों और यूरिया, डीएपी के कारण कैंसर जैसी बीमारी से भरे पड़े हैं, इन बीमारियों से बचने का एकमात्र उपाय प्राकृतिक खेती है, देश के किसानों को जल, जंगल, जमीन, जीवन और जलवायु बचाना है तो प्राकृतिक खेती को अपनाना ही होगा। इस अवसर पर राज्यपालश्री ने केन्द्रीय राज्यमंत्री कैलाश चैधरी, कृषि सचिव मनोज आहूजा, डीजी आईसीआर, हिमांशु पाठक, डायरेक्टर एनसीईआरटी प्रोफेसर डी. पी. सकलानी का स्मृति-चिह्न देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर ओएसडी टू गर्वनर डाॅ. राजेन्द्र विद्यालंकार, नीति आयोग की वरिष्ठ सलाहाकर डाॅ. नीलम पटेल, डाॅ. समर सिंह वीसी करनाल, नौनी यूनिवर्सिटी हिमाचल के वीसी डाॅ. राजेश्वर सिंह चंदेल, गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग, उप प्रधान मास्टर सतपाल काम्बोज, मुख्य अधिष्ठाता राधाकृष्ण आर्य, निदेशक कर्नल अरुण दत्ता, प्राचार्य सुबे प्रताप, व्यवस्थापक रामनिवास आर्य सहित आईसीआर और अन्य कृषि संस्थानों से जुड़े आला अधिकारी व बड़ी संख्या में कृषि वैज्ञानिक मौजूद रहे।
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने गुरुकुल के सभागार में आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कहा कि 60 के दशक में देश के अनाज भण्डार को भरने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने ऐतिहासिक कार्य किया, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता मगर अब रासायनिक खेती कई समस्याओं का कारण बन रही है जिसमें बदलाव की नितान्त आवश्यकता है। रासायनिक खेती के कारण आज देश में भूमि बंजर हो रही है, खेती की लागत लगातार बढ़ रही है, मित्रजीव खेतों से खत्म हो गये हैं, कीटनाशकों के प्रयोग से हमारा स्वास्थ्य बिगड़ चुका है और कैंसर जैसी बीमारियां हो रही हैं। अब किसानांे के लिए प्राकृतिक खेती का एकमात्र विकल्प है जिसे अपनाकर इन सारी समस्याओं से निजात मिल सकती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसानों के मन में प्राकृतिक खेती को लेकर जो भ्रम है कि इसमें उत्पादन घटता है, यह बिल्कुल गलत है। प्राकृतिक खेती में पहले ही साल किसान रासायनिक खेती के मुकाबले अच्छा उत्पादन ले सकते हैं और इसका प्रमाण गुरुकुल के फार्म पर देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में वह शक्ति है कि बंजर भूमि को भी उपजाऊ बना सकती है, उत्पादन घटने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने हिमाचल का उदाहरण देते हुए बताया कि पहले हिमाचल में सेब उगाने वाले लोग 14 स्प्रे करते थे। कीटनाशकों के प्रयोग से किसान कई तरह के त्वचा रोगों से भी पीड़ित हो गये थे और फसल का उत्पादन भी लगातार घट रहा था मगर जब वे प्राकृतिक खेती से जुड़े तो उन्हें किसी प्रकार के कोई स्प्रे की जरूरत नहीं रही और उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि हिमाचल में रासायनिक खेती वाला सेब 60 रूपये किलो और प्राकृतिक खेती वाला सेब 150 किलो बिक रहा है, ऐसे में किसानों को सीधा लाभ प्राकृतिक खेती से मिल रहा है। आज हिमाचल प्रदेश में उनके प्रयास से लगभग 2.5 लाख किसान प्राकृतिक खेती कर खुशहाल जीवन जी रहे हैं और दूसरे किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं। इसी प्रकार गुजरात में उनके प्रयास से 2 लाख ये अधिक किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि देश का किसान कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिकों पर अटूट विश्वास करता है और जब तक कृषि वैज्ञानिक प्राकृतिक खेती को दिल से नहीं अपनाएंगे, पूरी निष्ठा से इसका प्रचार नहीं करेंगे तब तक यह मिशन अधूरा है, अतः वैज्ञानिकों को वर्तमान परिस्थितियों का सही आंकलन कर मानव हित में प्राकृतिक खेती से किसानों को जोड़ना चाहिए। इस पर सभागार में मौजूद केन्द्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा, आईसीआर के डीजी, हिमान्शु पाठक, कृषि मंत्रालय के आला अधिकारियों सहित तमाम कृषि वैज्ञानिकों ने दोनो हाथ उठाकर आचार्य देवव्रत जी के आह्वान पर देश के किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का संकल्प लिया।
आईसीआर के डीजी, हिमान्शु पाठक ने प्राकृतिक खेती को जीवन देने वाली पद्धति बताते हुए आईसीआर के विभिन्न केंद्रों पर इसकी पूरी ट्रेनिंग देने की बात कही। उन्होंने कहा कि कृषि से जीव और जीवन को जोड़कर देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाया जा सकता है, वर्तमान में कृषि के नाम पर मित्रजीवों की हत्या कर जमीन को बंजर बनाने का जो पाप किया जा रहा है उसे केवल प्राकृतिक खेती करके ही कम किया जा सकता है। देश में किसानों के सामने अब केवल प्राकृतिक खेती ही एकमात्र उपाय है जिससे किसान समृद्ध होगा और लोग बीमारियों से बचेंगे साथ ही यूरिया, डीएपी पर होने वाले भारी खर्च से बचेंगे। वहीं केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के निर्देश पर कार्यक्रम में पधारे एनसीईआरटी के डायरेक्टर डी. पी. सकलानी ने आचार्य देवव्रत जी के आह्वान पर प्राकृतिक खेती को पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि पर छठी से 12वीं तक का पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है जिसे जल्द ही लागू कर दिया जाएगा इससे भविष्य में देश के 30 करोड़ बच्चों को प्राकृतिक खेती की मूलभूत जानकारी उपलब्ध होगी। प्राकृतिक खेती के हरियाणा प्रदेश के स्टेट एडवाइजर डाॅ. हरिओम व हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, हिसार के कृषि वैज्ञानिक डाॅ. बलजीत सहारण ने प्राकृतिक कृषि के वैज्ञानिक पहलुओं को सरल भाषा में प्रस्तुत किया और कार्यशाला में मौजूद कृषि विभाग के अधिकारियों की विभिन्न शंकाओं को दूर किया। उन्होंने गुरुकुल के फार्म की फसलों के उत्पादन संबंधित पूरा ब्यौरा भी प्रस्तुत किया।