वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक
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- शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का उद्देश्य शिक्षा के साथ संस्कृति को बढ़ाना : डॉ. संजीव शर्मा
- शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास हरियाणा प्रांत द्वारा एक दिवसीय प्रांतीय शैक्षिक कार्यशाला आयोजित
कुरुक्षेत्र, 18 सितम्बर: शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के नॉर्थ उत्तर क्षेत्र संयोजक तथा संघ प्रचारक जगराम ने कहा कि गुरू ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का रूप होता है। वो माता, पिता, भगवान भी होता है। गुरू का विस्तृत व विराट स्वरूप है। गुरू सर्वसम्पन्न है। अंधकार को दूर कर सबको प्रकाशित करने वाला गुरू है। गुरू से बढ़कर कोई नहीं है। वे रविवार को ग्रीनलैंड पब्लिक स्कूल, ग्राम दरड, करनाल में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास हरियाणा प्रांत द्वारा आयोजित एक दिवसीय प्रांतीय शैक्षिक कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास हरियाणा प्रांत के फेसबुक पेज को लांच भी किया।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के नार्थ उत्तर क्षेत्र संयोजक जगराम ने कहा कि आज की यह कार्यशाला शिक्षक धर्म को याद करवाने के लिए आयोजित की गई है। ज्ञान की चर्चा करने से व्यक्तित्व का विकास नहीं होता बल्कि उस पर अमल करने से होता है। शिक्षक ही हमारे अंदर समाज कल्याण की भावना जागृत करते है। एक साधारण मनुष्य को एक महान योद्धा बनाने से लेकर एक साधारण व्यक्ति को ज्ञानवान, आदर्श बनाने में शिक्षक का ही अहम योगदान है। वास्तव मे शिक्षा देना सबसे बड़ा धर्म का काम है क्योंकि शिक्षा के कारण ही कोई समाज विकसित और सम्पन्न हो सकता हैै। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का लक्ष्य भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों की नई गुणवत्ता को स्थापित करना आसान बनाना है जो वैश्विक मानकों के अनुरूप होगा और यह महत्वपूर्ण काम शिक्षक ही करेंगे।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के हरियाणा प्रांत के अध्यक्ष व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि इसकी स्थापाना 2 जुलाई 2004 को हुई। प्रारम्भ में यह आंदोलन एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम मे गलत ढंग से किए गए बदलाव पर केन्द्रित था, बाद में स्कूल में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम की विकृतियों को ठीक करने का सफल प्रयास हुआ। न्यास का उद्देश्य शिक्षा के साथ संस्कृति को किस तरह बढ़ाया जाए इसके लिए प्रयासरत है। देश की शिक्षा को विकल्प व नए आयाम देना भी इसका उद्देश्य है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संजय शर्मा ने कहा कि हमें अपने अंदर की शक्तियों को जगाना तथा उनका उपयोग करना है। भारत एक है। हमें चिंतन करने की जरूरत है कि हमें किस दिशा में जाना है। आज इस कार्यशाला में आए सभी प्रतिभागियों को यह निर्णय लेना है कि हरियाणा में कैसे शिक्षा को उच्च स्तर पर ले जाने के लिए क्या कायाकल्प करना है। इसके लिए पूरी टीम को एक साथ मिलकर कार्य करना होगा। हमें जो कार्य मिला है उसके लक्ष्य पर फोकस कर कार्य करें तो परिणाम वही आएगा जो हम चाहते हैं। जीजेयू के पूर्व कुलपति डॉ. राधेश्याम शर्मा ने कहा कि भारतीय संस्कृति को आगे ले जाने के लिए अच्छी शिक्षा प्रदान की जाती है। शिक्षक का कर्तव्य है कि वो शिक्षा द्वारा विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों व चरित्र निर्माण करें। उनमें आत्मविश्वास पैदा करें। इस दिशा में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास सराहनीय कार्य कर रही है।
दीपक वशिष्ठ ने कार्यशाला की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलें। प्रांत स्तर पर शैक्षिक कार्यशाला करनी होगी व चिंतन करना होगा। आगामी योजना के बारे में एक दूसरे से चर्चा करनी होगी।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रांत संयोजक प्रो.हितेन्द्र त्यागी ने न्यास की कार्यशैली के बारे में बताया। इस मौके पर डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी, रेखा शर्मा, डॉ. अनुपमा, दीपक वशिष्ठ, अनिल शर्मा, अमित शर्मा, रूपेश गौड, डॉ. गोपाल प्रसाद, डॉ. अजय अरोडा, बांके बिहारी, प्रेम कुमार, शिव कांत, जयभगवान शर्मा, डॉ.नरेश कुमार, गजराज ने पीपीटी के माध्यम से चरित्र निर्माण, वैदिक गणित, पर्यावरण शिक्षा, शिक्षा में स्वायत्तता, प्रबंधन शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षा, तकनीकी शिक्षा, शिक्षक शिक्षा, शोध प्रकल्प व इतिहास शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यो की रिपोर्ट को प्रस्तुत किया। धीरेन्द्र कौशिक ने मंच का संचालन किया।
इस अवसर पर डॉ. धर्मदेव, डॉ. कुलदीप सिंह, डॉ. अजय शर्मा, डॉ. रूपेश गौड, गवर्नमेंट कॉलेज तरावडी की रिटायर्ड प्रिंसीपल लोकेश त्यागी, इशिता बंसल, डॉ. नंद किशोर, सोनिया, अमित भटनागर सहित हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रांत प्रभारी व कार्यकर्ता मौजूद थे।