धर्म

रणभूमि में अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गीता उपदेश सर्वश्रेष्ठ ज्ञान माना :डॉ एसपी गुप्ता

नूंह/तावडू 22 दिसंबर
सुनील कुमार जांगड़ा

उन्नत केसरी

नूंह जिले में तावडू उपमंडल के अंतर्गत गांव बिस्सर अकबरपुर स्थित कामधेनु आरोग्य संस्थान के संस्थापक एवं पूर्व आईएएस डॉक्टर एसपी गुप्ता ने देशवासियों को गीता महोत्सव की बधाई देते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव के पावन पर्व पर कुरुक्षेत्र ब्रह्मसरोवर के घाटों पर विभिन्न राज्यों की लोक संस्कृति के अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे है। इन राज्यों के कलाकार अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर लोग अपने-अपने प्रदेशों की लोक कला के साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इस महोत्सव पर आने के लिए देश का प्रत्येक कलाकार आतुर रहता है। पर्यटकों को फिर से ब्रह्मसरोवर के तट पर लोक संस्कृति को देखने का अवसर मिला है।

अगली कड़ी में डॉक्टर एसपी गुप्ता ने बताया कि जब कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ तो कौरवों की सेना देख अर्जुन के मन में विषाद उत्पन्न हो गया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश दिए. कहा जाता है कि यह दिन मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था. इसलिए हर साल दिसंबर तिथि को गीता जयंती मनाई जाती है।

उन्होंने बताया कि महाभारत की रणभूमि में अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान सर्वश्रेष्ठ ज्ञान माना गया है। श्रीमद्भागवत गीता, श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई बहुमूल्य बातों का एक संग्रह है। भारतीय परम्परा में गीता वही स्थान रखती है जो उपनिषद और धर्मसूत्रों का है। भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिए इस ज्ञान के कारण ही अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हो सका।

गीता की उत्पत्ति कौरव और पांडवों के युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में मानी जाती है। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी बने थे। जब युद्ध भूमि पर अर्जुन ने देखा कि विपक्ष में उन्हीं का परिवार खड़ा है जिसके कारण वह परिवार के मोह से घिर गए। तब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि यह तो अधर्म है। मैं अपने ही परिवार के साथ राज्य के लिए कैसे लड़ सकता हूं।

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अर्जुन ने कहा कि हे माधव अपने ही परिवार के विरुद्ध मैं खड़ा नहीं हो सकता। तब श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा कि हे पार्थ! तुम्हें अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करना चाहिए और एक क्षत्रिय की भांति अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। गीता के उपदेश द्वारा भगवान ने युद्ध भूमि में अर्जुन के टूटे हुए मनोबल को जोड़ने का भी काम किया। जिसके बाद अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हो गए और धर्म की रक्षा के लिए उसने शस्त्र उठाए।

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