संवाद: वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक
उन्नत केसरी
- अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव को सफल बनांने के लिए विदेशों में बैठे अप्रवासी भारतीयों को साथ जोड़कर कमेटियों का गठन किया जाना चाहिए : नरेंद्र जोशी
- गीता जयंती पर विदेशी पर्यटकों के जरूरी सुविधाओं एवं आवश्यकताओं पर हुई चर्चा
उन्नत केसरी, चंडीगढ़। कुरुक्षेत्र गीता जयंती महोत्सव में शामिल होने के लिए अप्रवासी भारतीयों का आना शुरू गया है। बहुत से तो ऐसे अप्रवासी भारतीय हैं चाहे वे दशकों से विदेशों में रहते हैं लेकिन उनका व्यक्तिगत लगाव कुरुक्षेत्र की धरती से है। उनका मानना है कि सरकार को ऐसी योजनाओं पर काम करना चाहिए जिससे अधिक से अधिक विदेशों में बैठे लोग कुरुक्षेत्र पहुंचेंगे। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव को सफल बनांने के लिए विदेशों में बैठे अप्रवासी भारतीयों को साथ जोड़कर कमेटियों का गठन किया जाना चाहिए। यह चर्चा आस्ट्रेलिया एवं अमेरिका से आए आप्रवासी भारतीय लोगों से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से मिलकर की।
अप्रवासी भारतीयों से मिलने के उपरांत इसके बारे में जल्द ही केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से जल्द ही मुलाकात कर इस विषय पर बातचीत करेंगे। विदेशों से आए हुए प्रतिनिधिमंडल मंत्री अनुराग ठाकुर से शिष्टाचार भेंट के दौरान मिला। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे अमेरिका के सफल व्यवसायी नरेंद्र जोशी ने कहा कि वे तथा के साथी पिछले करीब 15 वर्षों से प्रत्येक वर्ष गीता जयंती के अवसर सभी काम छोड़कर कुरुक्षेत्र पहुंचते हैं लेकिन इस बार वह गीता जयंती से पूर्व ही अपने पूज्य पिता जी लक्ष्मी चंद जोशी के आकस्मिक निधन पर कुरुक्षेत्र में थे। अनुराग ठाकुर ने इस मौके जोशी के पिता निधन पर शोक व्यक्त किया।
इसी मौके पर अमेरिका के बोस्टन से आए अप्रवासी भारतीय जसबीर सिंह सैनी ने कहा कि उनकी जन्मस्थली ही कुरुक्षेत्र है। ऐसे में गीता जयंती से विशेष लगाव है लेकिन उन्हें यहां आकर देखने को मिलता है कि विदेशों में बैठे भारतीयों को गीता जयंती से जोड़ने की मात्र औपचारिकता होता है। सैनी ने कहा कि विश्व भर के विभिन्न देशों में बैठे भारतीयों को उचित जानकारी उपलब्ध करने के साथ सही मार्गदर्शन किया जाए तो कुरुक्षेत्र में विदेशों से आने वाले अप्रवासी भारतीयों एवं यात्रियों की संख्या कहीं अधिक हो। उल्लेखनीय की बीते वर्षों में कनेडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड सहित कई अन्य देशों से अपनी आस्था एवं भक्तिभाव से विदेशों से लोग गीता जयंती पर कुरुक्षेत्र पहुंचते हैं तो सरकार की ओर से कोई उचित व्यवस्था एवं सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होती है। वाशिंगटन डी. सी. से आए अप्रवासी भारतीय नरेंद्र जोशी ने कहा कि वह विदेशों से आने वाले लोगों के लिए जरूरी सुविधाओं एवं आवश्यकताओं के बारे में प्रशासनिक अधिकारियों एवं सरकार के प्रतिनिधियों से बातचीत कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि विदेशों से आने वाले लोगों के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थली एवं तीर्थस्थली पर एयरपोर्ट, गीता जयंती में विदेशों से आने वाले लोगों को विशेष वाहन एवं परमिट पास के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर के होटल, टूरिस्ट गाइड, अंतर्राष्ट्रीय स्तर साहित्य एवं गिफ्ट शॉप मॉल होने चाहिए। इस मौके पर विक्रम सिंह सैनी, सुरेश राणा, अंतर्राष्ट्रीय वॉलीबॉल कोच सुभाष कालका, बलविंदर इत्यादि मौजूद थे।
नरेंद्र जोशी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव-2022 इस बार कोरोना महामारी के दो साल बाद पूरे रंग में होगा। महोत्सव 19 नवंबर को ब्रह्मसरोवर पर शुरू हो और छह दिसंबर तक चलेगा। महोत्सव के मुख्य कार्यक्रम 29 नवंबर से चार दिसंबर तक होंगे। चार दिसंबर को दीपदान के साथ मुख्य कार्यक्रमों का समापन होगा।अप्रवासी भारतीयों का प्रतिनिधिमंडल नरेंद्र जोशी के नेतृत्वमे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से मिला है। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव को सफल बनांने के लिए विदेशों में बैठे अप्रवासी भारतीयों को साथ जोड़कर कमेटियों का गठन किया जाना चाहिए।
नरेंद्र जोशी ने कहा कि गीता केवल हिन्दू सभ्यता को मार्गदर्शन नहीं देती. यह जाति वाद से कही उपर मानवता का ज्ञान देती हैं। गीता के अठारह अध्यायो में मनुष्य के सभी धर्म एवम कर्म का ब्यौरा हैं। इसमें सत युग से कल युग तक मनुष्य के कर्म एवम धर्म का ज्ञान हैं। गीता के श्लोको में मनुष्य जाति का आधार छिपा हैं। मनुष्य के लिए क्या कर्म हैं उसका क्या धर्म हैं। इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर किया था। उसी ज्ञान को गीता के पन्नो में लिखा गया हैं। यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रन्थ हैं।
जोशी ने बताया कि भारत काल, कुरुक्षेत्र का वह भयावह युद्ध, जिसमे भाई ही भाई के सामने शस्त्र लिए खड़ा था। वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था। उस युद्ध के दौरान अर्जुन ने जब अपने ही दादा, भाई एवम गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उसका गांडीव (अर्जुन का धनुष) हाथो से छुटने लगा, उसके पैर काँपने लगे। उसने युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ पाया। तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया। इस प्रकार गीता का जन्म हुआ। श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म की सही परिभाषा समझाई। उसे निभाने की ताकत दी। एक मनुष्य रूप में अर्जुन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर श्री कृष्ण ने स्वयम उसे दिया। उसी का विस्तार भगवत गीता में समाहित है, जो आज मनुष्य जाति को उसका कर्तव्य एवम अधिकार का बोध कराता हैं। गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया। जब गीता का वाचन स्वयम प्रभु ने किये उस वक्त कलयुग का प्रारंभ हो चूका था। कलयुग ऐसा दौर हैं जिसमे गुरु एवम ईश्वर स्वयम धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पायें। ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति को राह प्रशस्त करते है। इसी कारण महाभारत काल में गीता की उत्त्पत्ति की गई।
हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म हैं जिसमे किसी ग्रन्थ की जयंती मनाई जाती हैं, इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्व को जगाये रखना हैं. कलयुग में गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ हैं जो मनुष्य को सही गलत का बोध करा सकता हैं।