हाल के महीनों में अमेरिका में हुई हिंसक घटनाओं, जिनमें कंज़र्वेटिव कार्यकर्ता चार्ली किर्क की हत्या और डलास में भारतीय मूल के एक व्यक्ति की निर्मम हत्या शामिल है, ने भारतीय मूल के समुदाय और छात्रों के बीच सुरक्षा को लेकर गहरी आशंका पैदा कर दी है।
उन्नत केसरी
वॉशिंगटन/नई दिल्ली, 14 सितम्बर: अमेरिका में बढ़ती राजनीतिक हिंसा और हाल की दर्दनाक घटनाओं ने भारतीय मूल के समुदायों और छात्रों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है।
सबसे ताज़ा मामला, कंज़र्वेटिव कार्यकर्ता चार्ली किर्क की यूटा वैली यूनिवर्सिटी में गोली मारकर हत्या का है। इस घटना ने न केवल अमेरिकी राजनीति को हिला दिया बल्कि विश्वविद्यालयों और प्रवासी समुदायों के भीतर सुरक्षा को लेकर चर्चाएँ तेज़ कर दी हैं। (स्रोत: Washington Post, AP)
इसी सप्ताह डलास में 50 वर्षीय भारतीय मूल के होटल प्रबंधक चंद्र नागमल्लैया की सिर काटकर हत्या का मामला सामने आया। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह घटना उनके परिवार के सामने हुई, जिसने भारतीय समुदाय को गहरे सदमे और भय में डाल दिया है। (स्रोत: CBS Texas, Times of India)
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इसके अलावा, 2024 से अब तक कई भारतीय या भारतीय मूल के छात्रों की संदिग्ध मौतें अलग-अलग अमेरिकी शहरों और विश्वविद्यालय परिसरों में दर्ज की गईं। इन मामलों में कुछ हत्या, कुछ हादसे और कुछ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परिस्थितियों से जुड़े पाए गए हैं। सामुदायिक संगठनों जैसे फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज़ (FIIDS) ने विश्वविद्यालयों और अमेरिकी प्रशासन से सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और पारदर्शी जांच की मांग की है। (स्रोत: Economic Times, India Today)
व्हाइट हाउस ने भी फरवरी 2024 में स्पष्ट किया था कि भारतीय छात्रों और प्रवासियों पर किसी भी प्रकार की हिंसा “अस्वीकार्य” है और ऐसे मामलों की जांच पूरी सख्ती से की जाएगी। (स्रोत: White House briefing, IndiaTV News)
समुदाय और छात्रों पर असर
इन घटनाओं के बाद बड़ी संख्या में भारतीय छात्र अधिक सतर्क रहने लगे हैं। वे समूह में यात्रा करने, देर रात बाहर जाने से बचने और परिवारों से लगातार संपर्क बनाए रखने जैसे कदम उठा रहे हैं। वहीं माता-पिता अपने बच्चों को अमेरिका भेजने को लेकर अधिक सोच-समझकर निर्णय ले रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सुरक्षा संबंधी आशंकाएँ बनी रहती हैं, तो इससे अमेरिका की ओर उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या पर भी असर पड़ सकता है।