कार मेड इन इंडिया

आज 4 पहियाँ वाहनों में कार की मार्केट बहुत तेज़ी से कंस्यूमर डिमांड के तहत टेक्नोलॉजी में बदलाव और सुधार कर रही है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर एडवांस सिक्योरिटी एवं रियल टाइम डाटा ड्रिवेन यूजर एक्सपीरियंस सर्विस आज एक कार में आपको ये सभी चीज़े देखने को मिलती है। आज कार एक यातायात का साधन ही नहीं बल्कि स्टेटस, कम्फर्ट और हमारे जीवन का एक अहम् हिस्सा बन चुका है। आज का आलम यह है की किसी भी बड़े शहर में आप सड़कों पर लाखों-करोड़ों गाड़ियों को गुज़रते देख सकते हैं। गाड़ियों की मानो बाढ़ ही आ गयी हो। देखने में लगता है की मानो हर कोई अपनी पर्सनल गाडी में सफर कर रहा हो। किन्तु सच्चाई इससे काफी अलग है, स्वास्थय एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा मई 2022 में नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे में एककृत किये आंकड़ों के अनुसार केवल 8 प्रतिशत परिवारों के पास कार है। यानी आज 12 में से एक परिवार कार रखता है।
आज जब भारतीय मोटर वाहन इंडस्ट्री भारत की सम्पूर्ण जीडीपी में 7.1 प्रतिशत और उत्पादन जीडीपी में 49 प्रतिशत की योगदान करती है। जबकि 1992 से 1993 में यह इंडस्ट्री केवल 2 .77 प्रतिशत ही योगदान कर पा रही थी। आज जब हमारा देश यूरोप के ऑटोमोटिव हब जर्मनी को पीछे छोड़ दुनिया की चौथी कार सेल्स मार्केट है, इससे पहले 2019 में भी भारत चौथे स्थान पर रहा था। और 2025 तक भारत के तीसरे स्थान पर पहुँचने की उम्मीद जताई जा रही है। 1990 की एलपीजी (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण) के पूर्व कार खरीदना एक बहुत ही कठिन बल्कि ज़्यादातर लोगों के लिए नामुमकिन सा माना जाता था। किन्तु एलपीजी पालिसी के बाद भी कार खरीदने वाले परिवारों की संख्या बहुत ही धीमी गति से बढ़ी है।
आज भारत में हर 1000 लोगों में से 33 के पास एक मोटर कार है, जो की कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और जापान की तुलना में (1000 में से 500) काफी कम है। परन्तु पिछले कुछ दिनों में पर्सनल कार मार्केट में मेड-इन-इंडिया कार की डिमांड बढ़ती देखि जा सकती है।

इंडियन कार मार्केट का इतिहास

भारत हमेशा से ही मल्टी-नेशनल कंपनियों के लिए प्रमुख मार्केट रहा है। भारत में प्रमुख निवेश इटली, जापान, नेथरलैंड और मॉरिशस से आती है। वहीं भारतीय कार सबसे पहले 1940 में हिंदुस्तान मोटर्स और प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड के रूप में सामने आयी थी। वहीं भारत में उत्पादित पहली कार हिंदुस्तान मोटर्स की एम्बेसडर थी जो की 1957 में हिंदुस्तान मोटर्स और मोरिस मोटर द्वारा बना कर कोलकाता में लांच किया गया। 1970 तक भारतीय वाहन मार्केट का शेयर हिंदुस्तान मोटर्स, प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड के साथ-साथ टेल्को, अशोक लेलैंड, महिंद्रा एंड महिंद्रा और बजाज ऑटो का रहा। उस समय कम प्रति व्यक्ति आय (पर-कैपिटा इनकम) के कारण वाहन का मार्केट बहुत छोटा था। और बढ़ती प्रति-व्यक्ति आय के साथ एक सस्ती यात्री कार की ज़रूरत भी महसूस की जाने लगी। 1981 में मारुती उद्योग लिमिटेड का जनम हुआ, 1982 में, मारुति उद्योग लिमिटेड और जापान की सुजुकी के बीच एक लाइसेंस और संयुक्त उद्यम समझौते (जेवीए) पर हस्ताक्षर किए गए थे। सबसे पहले, मारुति सुजुकी मुख्य रूप से कारों का आयातक था। भारत के बंद बाजार में, मारुति को पहले दो वर्षों में 2 पूरी तरह से निर्मित सुजुकी आयात करने का अधिकार मिला, और उसके बाद भी, शुरुआती लक्ष्य केवल 33 प्रतिशत स्वदेशी भागों का उपयोग करना था। इससे स्थानीय निर्माता काफी परेशान हैं। कुछ चिंताएं थीं कि मारुति सुजुकी द्वारा नियोजित तुलनात्मक रूप से बड़े उत्पादन को अवशोषित करने के लिए भारतीय बाजार बहुत छोटा था, सरकार ने बिक्री को बढ़ावा देने के लिए पेट्रोल कर को समायोजित करने और उत्पाद शुल्क को कम करने पर भी विचार किया। स्थानीय उत्पादन दिसंबर 1983 में एसएस30 एसएस40 सुजुकी फ्रोंटे आल्टो-आधारित मारुति 800 की शुरुआत के साथ शुरू हुआ। 1984 में, 800 के समान तीन-सिलेंडर इंजन वाली मारुति वैन जारी की गई थी और गुड़गांव में संयंत्र की स्थापित क्षमता 40,000 इकाइयों तक पहुंच गई थी।

भारतीय कार निर्माताओं का प्रभुत्व

1990 की एलपीजी रिफार्म के बाद बाहरी कंपनियों ने अपने शेयर और प्रभुत्व बढ़ाने शुरू किये, उस समय प्रमुख रूप से जॉइंट वेंचर के तौर पर काम कर रही कंपनियां भी अपना प्रभुत्व स्थापित करने पर लग गयीं। जिसका कारण यह भी था की भारतीय निर्माता विस्तार के लिए पर्याप्त पूंजी जुटा पाने में असमर्थ से दिखाई देते थे, और विदेशी कंपनियों के आधीन थे। किन्तु मारुती और टाटा समेत महिंद्रा एंड महिंद्रा द्वारा स्वदेशी डिज़ाइन और डेवलपमेंट पर ज़ोर देते हुए मार्केट को समझकर भारतीय कंज़्यूमर को आकर्षित करना जारी रखा। टाटा इंडिका, महिंद्रा स्कार्पियो इसके प्रमुख उदहारण हैं। 2004 में टाटा मोटर्स ने डैमलर बेंज के साथ मिलकर मर्सिडीज़ बेंज कार के उत्पादन के लिए जॉइंट वेंचर साइन किया। जिसने बहार से इम्पोर्ट किये जाने वाली मर्सिडीज़ के लिए भारत में दरवाज़े बंद कर दिए। यहीं से बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत को अब एक एक्सपोर्ट निर्माता बनने लगा। छोटी यात्री कारों के लिए एक उत्पादन हब के रूप में भारत को देखा जाने लगा। जिससे भारत में कार निर्माण से जुडी सभी घटकों को विस्तार और गुणवत्ता उन्नयन मिला। आज भारत में सरकार द्वारा 100 एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) को परमिट कर दिया है। जिससे बड़े स्तर पर उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके। जिसके चलते भारत चीन के बाद दूसरा बड़ा कार निर्माता बन गया है। साथ ही भारत बड़ी गाड़ियों का असेंबली हब तथा छोटी गाड़ियों के लिए उत्पादन हब बन गया है। सुषमा नाथ