छात्र को कर्त्तव्यनिष्ठ बनाता है उपनयन संस्कार -डॉ. विद्यालंकार
- गुरुकुल में नवप्रविष्ट छात्रों का हुआ उपनयन संस्कार
- ब्रह्मचारियों ने दिखाए मल्लखम्भ, योगासन, जिम्नास्टिक के हैरतअंगेज करतब
कुरुक्षेत्र, 11 अगस्त 2022: सनातन वैदिक संस्कृति में उपनयन संस्कार का बड़ा महत्त्व है। यह संस्कार ब्रह्मचारी को तीन ऋणों का स्मरण कराता है जिससे उऋण होने के लिए विद्यार्थी को अनुशासन, कर्त्तव्यनिष्ठ और मेहनती बनने के लिए आचार्य प्रेरित करता है। उक्त शब्द आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र के जिम्नेजियम हॉल में आयोजित उपनयन संस्कार एवं वृक्षारोपण संस्कार में उपस्थित अभिभावकों को सम्बोधित करते हुए समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार, ओएसडी टू गर्वनर गुजरात ने कहे। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी को कर्मशील और कर्त्तव्यनिष्ठ होना चाहिए क्योंकि हमेशा कर्मशील लोगों ने ही इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि असफलता का कारण हाथों की लकीरों में नहीं बल्कि मनुष्य की अकर्मण्यता है, भाग्य के भरोसे बैठे रहने वालों के हिस्से में ही असफलता आती है। इस अवसर पर गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग, निदेशक कर्नल अरुण दत्ता, प्राचार्य सूबे प्रताप, व्यवस्थापक रामनिवास आर्य, मुख्य लेखा अधिकारी सतपाल देशवाल भी मौजूद रहे। प्रातः यज्ञ के साथ समारोह का शुभारम्भ हुआ जिसमें 16 यज्ञ कुण्ड पर विद्यार्थी और उनके अभिभावकों ने वैदिक मंत्रों के ध्वनि के मध्य घी और सामग्री से आहूतियां देकर विश्व कल्याण की कामना की। मुख्य अतिथि डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार सहित गुरुकुल के अधिकारियों ने वृक्षारोपण कर प्रकृति को हरी-भरी बनाने और पर्यावरण को बचाने का संदेश दिया। समारोह के मध्य गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग व निदेशक कर्नल दत्ता द्वारा मुख्य अतिथि डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार को स्मृति-चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। मंच का सफल संचालन मुख्य संरक्षक संजीव आर्य एवं रवि शास्त्री द्वारा किया गया।
उपनयन संस्कार पर बोलते हुए डॉ. विद्यालंकार ने कहा कि विद्यार्थी के ऊपर तीन ऋण होते हैं और जनेऊ के तीन धागे इन ऋणों का आभास कराते हैं। पहला ऋण है देवऋण, अर्थात् देवताओं का ऋण इससे उऋण होने के लिए हमें प्रकृति का संरक्षण करना चाहिए जैसे पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अधिक से अधिक संख्या में पौधारोपण करें। दूसरा ऋण है पितृऋण अर्थात जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया है उनकी सेवा करें, उनका आज्ञापालन करें। वृद्धावस्था या बीमारी की हालत में उनकी सेवा, सुश्रूसा करें। तीसरा ऋण होता है ऋषि ऋण अर्थात् हमारे ऋषि-मुनियों, हमारे आचार्यों का ऋण। हमारे ऋषियों ने हमें जो ज्ञान प्रदान किया है, जो संस्कार हमें विरासत में मिलें है हम उनका विस्तार आने वाले पीढ़ियों तक करें। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, उन्हें उच्च शिक्षित बनाएं जिससे वे समाज में जाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाएं और जो ज्ञान बांटने की परम्परा हमारे देश में प्राचीनकाल से रही है, उसका निर्वहन करें। इस प्रकार हम इन तीन ऋणों से उऋण हो सकते हैं। उपनयन संस्कार करने का मुख्य उद्देश्य यही है कि ब्रह्मचारी को अपने ऊपर इन तीन ऋणों का स्मरण रहे और वह गुरुकुल में षिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त जब समाज में जाए तो एक सभ्य नागरिक बनकर ईमानदारी और पूर्ण निष्ठा से अपने कर्त्तव्यों को निभाये। डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार ने गुरुकुल में पधारे सभी अभिभावकों व छात्रों को रक्षाबंधन के पवित्र पर्व की बधाई एवं शुभकामनाएं भी दीं।
निदेशक कर्नल अरुण दत्ता ने अपने संक्षित संबोधन में गुरुकुल की शैक्षणिक उपलब्धियों के साथ-साथ अपने पुरुषार्थ से गुरुकुल को आकाश की ऊचाइयों पर पहुंचाने वाले गुजरात के महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी की कर्मशीलता का अद्भुत परिचय दिया। उन्होंने बताया कि गुरुकुल के तीन ब्रह्मचारी एनडीए में लेफ्टिनेंट की ट्रेनिंग के लिए खड़गवासला गये हैं। यह गुरुकुल के लिए बड़े फक्र की बात है क्योंकि एक ही संस्थान के एक साथ तीन विद्यार्थी एनडीए में जाना, अपने आप में बड़ी बात है, यह करिश्मा केवल गुरुकुल कुरुक्षेत्र ने करके दिखाया है। उन्होंने 10वीं और 12वीं के सीबीएसई के परीक्षा परिणामों का जिक्र करते हुए कहा कि विगत 12 वर्षों से गुरुकुल का 10वीं और 12वीं का परिणाम न केवल शत-प्रतिशत रहा है बल्कि यहां के सभी बच्चे मेरिट से पास होते हैं। साथ ही जेईई, आईआईटी, नीट जैसी परीक्षाओं में भी गुरुकुल के विद्यार्थी अच्छी रेंक लाते हैं। उन्होंने छात्रों के अभिभावकों से बच्चों के रिजल्ट कार्ड की अपेक्षा उसे चरित्रवान्, अनुशासन प्रिय और कर्त्तव्यनिष्ठ बनाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति की यही विशेषता है कि यहां अक्षरज्ञान तो दिया ही जाता है साथ ही संस्कारों की ऐसी निधि छात्रों के मन-मस्तिष्क पर स्थापित की जाती है जिससे वह जीवन में अच्छा नागरिक बनकर देश, समाज और अपने माता-पिता की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहे।
समारोह में गुरुकुल के विद्यार्थियों ने मल्लखम्भ, योगासन और जिम्नास्टिक की ऐसी मनोहारी प्रस्तुतियां दीं जिन्हें देखकर पंडाल में उपस्थित सभी अभिभावक आश्चर्यचकित रह गये। इन प्रदर्शनों से यह स्पष्ट हो गया कि जमीन से 12 फुट ऊंचे मल्लमम्भ पर योगासनों का शानदार प्रदर्शन केवल गुरुकुल के ब्रह्मचारी ही कर सकते हैं। शानदार प्रदर्शन पर पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गंूज उठा। छात्रों द्वारा निकाली गई ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के तहत समारोह निकाली गई ‘तिरंगा यात्रा’ को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया।